कौवा भी गिद्द की तरह विलुप्त होने वाले

इटावा ।" कौवा " प्रजाति का पक्षी जो बहुतायत की संख्या में जनपद के चकरनगर में पाया जाता था  अब धीरे-धीरे विलुप्त होने की स्थिति तक पहुंच गया है। इस क्षेत्र में जिसे कौवा कहते हैं अंग्रेजी में क्रो, गुजराती में ' कागडो, मराठी में कावआ ,  राजस्थान में कागला और मराठी में हाडा के नाम से भी जाना जाता है। वैसे एक गीत प्रचलित है कि " काहे बोले कगवा मोरी अटरिया " अर्थात इस पक्षी के बोलने को मेहमान के आने का सूचक भी माना जाता है। श्राद्ध में इस पक्षी को जिमाना शुभ माना जाता है पर अब यह प्रायः लुप्त होता जा रहा है । इसका सबसे बड़ा कारण है पशुओं के शरीर पर की जाने वाली विषाक्त दबायों का प्रयोग और उन्हीं  पशुओं के मृत शरीर को नोंच-नोंच कर  खाने के बाद यह कौवा बुरी तरह ग्रसित होते हैं। जिससे इनकी मौत हो जाती है इस संबंध में "प्रशांत सिंह चौहान" पशु -पक्षी प्रेमी बताते हैं कि मृत पशुओं का मांस नोच नोच कर खाने से इनके शरीर में ऐसी विषाक्तता पैदा हो जाती है कि पहले इनके शरीर से बाल झड़ते हैं फिर पंख टूट जाते हैं और  इनकी मौत हो जाती है। इस संबंध में उन्होंने बताया- पक्षियों के लिये डाईक्लोफेनिकपोटेशियम और डाइक्लोफेनिक सोडियम की दवाएं विशेषकर हानिकारक हैं। शोध में बताया गया है कि गिद्धों की प्रजातियां भी इसी औषधि की वजह से विलुप्त हो गई और कौवा भी इसी दिशा में जा रहा है।